वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

उ꣣षा꣢꣫ अप꣣ स्व꣢सु꣣ष्ट꣢मः꣣ सं꣡ व꣢र्त्तयति वर्त꣣नि꣡ꣳ सु꣢जा꣣त꣡ता꣢ ॥४५१

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

उषा अप स्वसुष्टमः सं वर्त्तयति वर्तनिꣳ सुजातता ॥४५१

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ꣣षाः꣢ । अ꣡प꣢꣯ । स्व꣡सुः꣢꣯ । त꣡मः꣢꣯ । सम् । व꣣र्त्तयति । वर्त्तनि꣢म् । सु꣣जात꣡ता꣢ । सु꣣ । जात꣣ता꣢ ॥४५१॥१

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 451 | (कौथोम) 5 » 2 » 2 » 5 | (रानायाणीय) 4 » 11 » 5


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र का देवता उषा है। उषा के महत्त्व का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

जैसे (उषाः) प्रभातकालीन प्राकृतिक उषा (स्वसुः) अपनी बहिन रात्रि के (तमः) अन्धकार को (अप) हटा देती है, और (सुजातता) अपने श्रेष्ठ जन्म से (वर्तनिम्) मार्ग को (सं वर्तयति) प्रकाशित कर देती है, वैसे ही (उषाः) योगशास्त्र में प्रसिद्ध आत्मख्याति (स्वसुः) आत्मा में राग, द्वेष आदि को प्रक्षिप्त करनेवाली अविद्या के (तमः) तामसिक प्रभाव को (अप) दूर कर देती है और (सुजातता) अपने शुभ जन्म से (वर्तनिम्) साधक के योगमार्ग को (सं वर्तयति) अध्यात्मप्रकाश से प्रकाशित कर देती है ॥५॥

भावार्थभाषाः -

जो मनुष्य अविद्यारूप रात्रि को दूर करके विवेकख्यातिरूप उषा के प्रकाश को प्राप्त करते हैं, वे मुक्ति के अधिकारी हो जाते हैं ॥५॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ उषा देवता। उषसो महत्त्वमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

यथा (उषाः) प्रभातदीप्तिः (स्वसुः) स्वभगिन्याः रात्र्याः (तमः) अन्धकारम् (अप) अपवर्तयति, अपसारयति, किञ्च (सुजातता) सुजन्मना। सुजातता सुजाततया। ‘सुपां सुलुक्०’ अ० ७।१।३९ इति तृतीयैकवचने पूर्वसवर्णदीर्घः। (वर्तनिम्) मार्गम् (सं वर्तयति) प्रकाशयति, तथा (उषाः) योगशास्त्रे प्रसिद्धा आत्मख्यातिः (स्वसुः) जीवात्मनि रागद्वेषादिप्रक्षेप्त्र्याः अविद्यायाः। सु तीव्रतया अस्यति क्षिपतीति स्वसा तस्याः। सुपूर्वात् असु क्षेपणे धातोः ‘सावसेर्ऋन्। उ० २।९८’ इति ऋन् प्रत्ययः। (तम्) तामसं प्रभावम् (अप) अपसारयति, किञ्च (सुजातता) सुजन्मना (वर्तनिम्) साधकस्य योगमार्गम् (सं वर्तयति) अध्यात्मप्रकाशेन प्रकाशयति ॥५॥

भावार्थभाषाः -

ये जना अविद्यारात्रिमपगमय्य विवेकख्यातिरूपाया उषसः प्रकाशं प्राप्नुवन्ति ते मुक्तेरधिकारिणो जायन्ते ॥५॥

टिप्पणी: १. ऋ० १०।१७२।४। अथ० १९।१२।१ पूर्वार्द्धः, ऋषिः वसिष्ठः।